वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१० मई, २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नोएडा<br /><br />दोहा:<br />कबीर रसरी पाँव में, कहँ सोवै सुख चैन।<br />साँस नगाड़ा कूँच का, बाजत है दिन रैन ॥ (संत कबीर)<br /><br />प्रसंग:<br />क्या सुख की आकांशा ही दुःख का कारण है?<br />दुःख का क्या निजात है?<br />जहाँ दुःख का साक्षात्कार नहीं, वहाँ कोई बदलाव नहीं<br />"कबीर रसरी पाँव में, कहँ सोवै सुख चैन" इस दोहे में "रसरी" का क्या आशय है?